भारतमें पारथके रथकेतु कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हलबल भो I
कह्यो द्रोण भीषम समीरसुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो II
बानर सुभाय बालकेलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँगहूँतें घाटि नभतल भो I
नाइ-नाइ माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवनको फल भो II ५ II
भावार्थ :- महाभारतमें अर्जुनके रथकी पताकापर कपिराज हनुमानजीने गर्जन किया, जिसको सुनकर दुर्योधनकी सेनामें घबराहट उत्पन्न हो गयी I द्रोणाचार्य और भीष्मपितामहने कहा कि ये महाबली पवनकुमार हैं I जिनका बल वीररसरूपी समुद्रका जल हुआ है I इनके स्वाभाविक ही बालकोंके खेलके समान धरतीसे सुर्यतकके कुदानने आकाशमण्डलको एक पगसे भी कम कर दिया था I सब योद्धागण मस्तक नवा-नवाकर और हाथ जोड़-जोड़कर देखते हैं I इस प्रकार हनुमानजीका दर्शन पानेसे उन्हें संसारमें जीनेका फल मिल गया II ५ II
कह्यो द्रोण भीषम समीरसुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो II
बानर सुभाय बालकेलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँगहूँतें घाटि नभतल भो I
नाइ-नाइ माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवनको फल भो II ५ II
भावार्थ :- महाभारतमें अर्जुनके रथकी पताकापर कपिराज हनुमानजीने गर्जन किया, जिसको सुनकर दुर्योधनकी सेनामें घबराहट उत्पन्न हो गयी I द्रोणाचार्य और भीष्मपितामहने कहा कि ये महाबली पवनकुमार हैं I जिनका बल वीररसरूपी समुद्रका जल हुआ है I इनके स्वाभाविक ही बालकोंके खेलके समान धरतीसे सुर्यतकके कुदानने आकाशमण्डलको एक पगसे भी कम कर दिया था I सब योद्धागण मस्तक नवा-नवाकर और हाथ जोड़-जोड़कर देखते हैं I इस प्रकार हनुमानजीका दर्शन पानेसे उन्हें संसारमें जीनेका फल मिल गया II ५ II
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