जयति दशकंठ-घटकर्ण-वारिद-नाद-कदन-कारन, कालनेमि-हंता I
अघटघटना-सुघट सुघट-विघटन विकट, भूमि-पाताल-जल-गगन-गंता II ८ II
भावार्थ :- हे पवनपुत्र हनुमान ! तुम्हारी जय हो ! रावण, कुंभकर्ण और मेघनादके नाशमें तुम्हीं कारण हो; कपटी कालनेमिको तुम्हींने मारा था I तुम असंभवको संभव और संभवको असंभव कर दिखलानेवाले और बड़े विकट हो I पृथ्वी, पाताल, समुद्र और आकाश सभी स्थानोंमें तुम्हारी अबाधित गति है II ८ II
अघटघटना-सुघट सुघट-विघटन विकट, भूमि-पाताल-जल-गगन-गंता II ८ II
भावार्थ :- हे पवनपुत्र हनुमान ! तुम्हारी जय हो ! रावण, कुंभकर्ण और मेघनादके नाशमें तुम्हीं कारण हो; कपटी कालनेमिको तुम्हींने मारा था I तुम असंभवको संभव और संभवको असंभव कर दिखलानेवाले और बड़े विकट हो I पृथ्वी, पाताल, समुद्र और आकाश सभी स्थानोंमें तुम्हारी अबाधित गति है II ८ II
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