बाण लग्यो उर लछिमन के तब, प्रान तजे सुत रावन मारो I
लै गृह बैध सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो II
आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो I
को नहिं जानत है जगमें कपि, संकटमोचन नाम तिहारो II ५ II
भावार्थ :- जब रावण-सुत मेघनाद (इन्द्रजीत)- के बाण (वीरघातिनी अमोघ शक्ति)- की चोटसे लक्ष्मणजीके प्राण निकलने ही वाले थे, तब आप लंकासे सुषेन वैधको उसके घर सहित उठा लाये तथा (सुषेन वैधके परामर्शसे) द्रोणाचल पर्वतको उखाड़कर संजीवनी बूटी भी ला दी I इस प्रकार आपने लक्ष्मणजीके प्राणोंकी रक्षा की I संसारमें ऐसा कौन है जो आपके 'संकटमोचन' नामसे परिचित नहीं है ? II ५ II
लै गृह बैध सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो II
आनि सजीवन हाथ दई तब, लछिमन के तुम प्रान उबारो I
को नहिं जानत है जगमें कपि, संकटमोचन नाम तिहारो II ५ II
भावार्थ :- जब रावण-सुत मेघनाद (इन्द्रजीत)- के बाण (वीरघातिनी अमोघ शक्ति)- की चोटसे लक्ष्मणजीके प्राण निकलने ही वाले थे, तब आप लंकासे सुषेन वैधको उसके घर सहित उठा लाये तथा (सुषेन वैधके परामर्शसे) द्रोणाचल पर्वतको उखाड़कर संजीवनी बूटी भी ला दी I इस प्रकार आपने लक्ष्मणजीके प्राणोंकी रक्षा की I संसारमें ऐसा कौन है जो आपके 'संकटमोचन' नामसे परिचित नहीं है ? II ५ II
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