सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँकको I
देवी देव दानव दयावने है जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँकको II
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताकै जो अनर्थ सो समर्थ एक आँकको I
सब दिन रुरो परै पूरो जहाँ-तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँकको II १२ II
भावार्थ :- सेवक हनुमानजीकी सेवा समझकर जानकीनाथ भगवान श्रीरामने संकोच माना अर्थात एहसानसे दब गये, शूलपाणि शंकर पक्षमें रहते और स्वर्गके स्वामी देवराज इन्द्र नवते हैं । देवी-देवता, दानव सब दयाके पात्र बनकर हाथ जोड़ते हैं, फिर दूसरे बेचारे दरिद्र-दुखिया राजा कौन चीज हैं । जागते, सोते, बैठते, डोलते, क्रीड़ा करते और आनन्दमें मग्न (पवनकुमारके) सेवकका अनिष्ट चाहेगा ऐसा कौन सिद्धान्त का समर्थ है ? उसका जहाँ-तहाँ सब दिन श्रेष्ठ रीतिसे पूरा पड़ेगा, जिसके हृदयमें अंजनीकुमारकी हाँकका भरोसा है II १२ II
देवी देव दानव दयावने है जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँकको II
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताकै जो अनर्थ सो समर्थ एक आँकको I
सब दिन रुरो परै पूरो जहाँ-तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँकको II १२ II
भावार्थ :- सेवक हनुमानजीकी सेवा समझकर जानकीनाथ भगवान श्रीरामने संकोच माना अर्थात एहसानसे दब गये, शूलपाणि शंकर पक्षमें रहते और स्वर्गके स्वामी देवराज इन्द्र नवते हैं । देवी-देवता, दानव सब दयाके पात्र बनकर हाथ जोड़ते हैं, फिर दूसरे बेचारे दरिद्र-दुखिया राजा कौन चीज हैं । जागते, सोते, बैठते, डोलते, क्रीड़ा करते और आनन्दमें मग्न (पवनकुमारके) सेवकका अनिष्ट चाहेगा ऐसा कौन सिद्धान्त का समर्थ है ? उसका जहाँ-तहाँ सब दिन श्रेष्ठ रीतिसे पूरा पड़ेगा, जिसके हृदयमें अंजनीकुमारकी हाँकका भरोसा है II १२ II
No comments:
Post a Comment