सिंधु बचन सुनि राम सचिव बोलि प्रभु अस कहेउ ।
अब बिलंबु केहि काम करहु सेतु उतरै कटकु ॥
सुनहु भानुकुल केतु जामवंत कर जोरि कह ।
नाथ नाम तव सेतु नर चढ़ि भव सागर तरहिं ॥
भावार्थ :- समुद्रके वचन सुनकर प्रभु श्रीरामजीने मंत्रियोंको बुलाकर ऐसा कहा- अब विलंब किसलिए हो रहा है ? सेतु (पुल) तैयार करो, जिसमें सेना उतरे । ऋक्षराज जाम्बवानने हाथ जोड़कर कहा- हे सूर्यकुलके ध्वजास्वरूप (कीर्तिको बढ़ाने वाले) श्रीरामजी ! सुनिए। हे नाथ ! (सबसे बड़ा) सेतु तो आपका नाम ही है, जिस पर चढ़कर (जिसका आश्रय लेकर) मनुष्य संसाररूपी समुद्र (भवसागर) से पार हो जाते हैं।
अब बिलंबु केहि काम करहु सेतु उतरै कटकु ॥
सुनहु भानुकुल केतु जामवंत कर जोरि कह ।
नाथ नाम तव सेतु नर चढ़ि भव सागर तरहिं ॥
भावार्थ :- समुद्रके वचन सुनकर प्रभु श्रीरामजीने मंत्रियोंको बुलाकर ऐसा कहा- अब विलंब किसलिए हो रहा है ? सेतु (पुल) तैयार करो, जिसमें सेना उतरे । ऋक्षराज जाम्बवानने हाथ जोड़कर कहा- हे सूर्यकुलके ध्वजास्वरूप (कीर्तिको बढ़ाने वाले) श्रीरामजी ! सुनिए। हे नाथ ! (सबसे बड़ा) सेतु तो आपका नाम ही है, जिस पर चढ़कर (जिसका आश्रय लेकर) मनुष्य संसाररूपी समुद्र (भवसागर) से पार हो जाते हैं।
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