जारि-बारि, कै बिधूम, बारिधि बुताइ लूम, नाइ माथो पगनि, भो ठाढ़ो कर जोरि कै I
मातु ! कृपा कीजै, सहिदानि दीजै, सुनि सीय, दीन्ही है असीस चारू चूडामनि छोरि कै II
कहा कहौं तात ! देखे जात ज्यों बिहात दिन, बड़ी अवलंब ही, सो चले तुम्ह तोरि कै II
'तुलसी' सनीर नैन, नेहसो सिथिल बैन I
भावार्थ :- फिर हनुमानजीने लंकाको जलाकर उसे धूमरहित कर अपनी पूंछको समुद्रमें बूता दी, बादमें (माता सीताजीके) चरणोंमें सिर नवाया और उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गये, (तथा कहने लगे)- 'हे माता ! कृपाकर कोई सहिदानी (चिन्ह) दीजिये I' यह सुनकर श्रीजानकीजीने आशीर्वाद दिया और अपना सुन्दर चूड़ामणि उतारकर देते हुए कहा- 'पुत्र ! मैं तुमसे क्या कहुँ ? मेरे दिन किस प्रकार कट रहे हैं, सो तो तुम देख ही रहे हो I तुम्हारे रहनेसे बड़ा सहारा था, उसे भी तुम तोड़कर अब चल दिये I' गोसाईजी कहते हैं- (इतना कहते-कहते) माता वैदेहीके नेत्रोंमें जल भर आया और वाणी शिथिल हो गयी I
मातु ! कृपा कीजै, सहिदानि दीजै, सुनि सीय, दीन्ही है असीस चारू चूडामनि छोरि कै II
कहा कहौं तात ! देखे जात ज्यों बिहात दिन, बड़ी अवलंब ही, सो चले तुम्ह तोरि कै II
'तुलसी' सनीर नैन, नेहसो सिथिल बैन I
भावार्थ :- फिर हनुमानजीने लंकाको जलाकर उसे धूमरहित कर अपनी पूंछको समुद्रमें बूता दी, बादमें (माता सीताजीके) चरणोंमें सिर नवाया और उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गये, (तथा कहने लगे)- 'हे माता ! कृपाकर कोई सहिदानी (चिन्ह) दीजिये I' यह सुनकर श्रीजानकीजीने आशीर्वाद दिया और अपना सुन्दर चूड़ामणि उतारकर देते हुए कहा- 'पुत्र ! मैं तुमसे क्या कहुँ ? मेरे दिन किस प्रकार कट रहे हैं, सो तो तुम देख ही रहे हो I तुम्हारे रहनेसे बड़ा सहारा था, उसे भी तुम तोड़कर अब चल दिये I' गोसाईजी कहते हैं- (इतना कहते-कहते) माता वैदेहीके नेत्रोंमें जल भर आया और वाणी शिथिल हो गयी I
No comments:
Post a Comment