भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन, अनुमानि सिसुकेलि कियो फेरफार सो I
पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रमको न भ्रम, कपि बालक-बिहार सो II
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो I
बल कैधौं बीररस, धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनिको सार सो II ४ II
भावार्थ :- सूर्यभगवानके समीपमें हनुमानजी विद्या पढ़नेके लिये गये, सूर्यदेवने मनमें बालकोंका खेल समझकर बहाना किया (कि मैं स्थिर नहीं रह सकता और बिना आमने-सामने पढ़ना-पढ़ाना असम्भव है) I हनुमानजीने सूरज नारायणकी और मुख करके पीठकी तरफ पैरोंसे प्रसन्नमन आकाशमार्गमें बालकोंके खेलके समान गमन किया और उससे पाठ्यक्रममें किसी प्रकारका भ्रम नहीं हुआ I इस अचरजके खेलको देखकर इन्द्रादि लोकपाल, विष्णु, शंकर और ब्रह्माकी आँखें चौंधिया गयीं तथा चित्तमें खलबली-सी उत्पन्न हो गयी I तुलसीदासजी कहते हैं - सब सोचने लगे कि यह न जाने बल, न जाने वीररस, न जाने धैर्य, न जाने हिम्मत अथवा न जाने इस सबका सार ही शरीर धारण किये हैं II ४ II
पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रमको न भ्रम, कपि बालक-बिहार सो II
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो I
बल कैधौं बीररस, धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनिको सार सो II ४ II
भावार्थ :- सूर्यभगवानके समीपमें हनुमानजी विद्या पढ़नेके लिये गये, सूर्यदेवने मनमें बालकोंका खेल समझकर बहाना किया (कि मैं स्थिर नहीं रह सकता और बिना आमने-सामने पढ़ना-पढ़ाना असम्भव है) I हनुमानजीने सूरज नारायणकी और मुख करके पीठकी तरफ पैरोंसे प्रसन्नमन आकाशमार्गमें बालकोंके खेलके समान गमन किया और उससे पाठ्यक्रममें किसी प्रकारका भ्रम नहीं हुआ I इस अचरजके खेलको देखकर इन्द्रादि लोकपाल, विष्णु, शंकर और ब्रह्माकी आँखें चौंधिया गयीं तथा चित्तमें खलबली-सी उत्पन्न हो गयी I तुलसीदासजी कहते हैं - सब सोचने लगे कि यह न जाने बल, न जाने वीररस, न जाने धैर्य, न जाने हिम्मत अथवा न जाने इस सबका सार ही शरीर धारण किये हैं II ४ II
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