तुम्हरे भजन राम को पावै I जनम जनम के दुख बिसरावै II ३३ II
अंत काल रघुबर पुर जाई I जहाँ जन्म हरि−भक्त कहाई II ३४ II
भावार्थ :- हे सीताराम भक्त हनुमानजी ! आपके भजनसे लोग भगवान श्रीरामको प्राप्त कर लेते हैं और अपने जन्म-जन्मान्तरके दुःखोंको भूल जाते हैं अर्थात उन दुःखोंसे उन्हें मुक्ति मिल जाती है II ३३ II अन्त समयमें मृत्यु होनेपर वह भक्त प्रभुके परमधाम (साकेत−धाम) जायगा और यदि उसे जन्म लेना पड़ा तो उसकी प्रसिद्धि हरिभक्तके रूपमें हो जायगी II ३४ II
अंत काल रघुबर पुर जाई I जहाँ जन्म हरि−भक्त कहाई II ३४ II
भावार्थ :- हे सीताराम भक्त हनुमानजी ! आपके भजनसे लोग भगवान श्रीरामको प्राप्त कर लेते हैं और अपने जन्म-जन्मान्तरके दुःखोंको भूल जाते हैं अर्थात उन दुःखोंसे उन्हें मुक्ति मिल जाती है II ३३ II अन्त समयमें मृत्यु होनेपर वह भक्त प्रभुके परमधाम (साकेत−धाम) जायगा और यदि उसे जन्म लेना पड़ा तो उसकी प्रसिद्धि हरिभक्तके रूपमें हो जायगी II ३४ II
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