हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना । जातुधान अति भट बलवाना ॥
मोरें हृदय परम संदेहा । सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा ॥
कनक भूधराकार सरीरा । समर भयंकर अतिबल बीरा ॥
सीता मन भरोस तब भयऊ । पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ ॥
भावार्थ :- (माता सीताजीने कहा-) हे पुत्र (हनुमान) ! सब वानर तुम्हारे ही समान (नन्हें-नन्हें से) होंगे, राक्षस तो बड़े बलवान, योद्धा हैं । अतः मेरे हृदयमें बड़ा भारी संदेह होता है (कि तुम जैसे बंदर राक्षसोंको कैसे जीतेंगे !) । यह सुनकर हनुमानजीने अपना शरीर प्रकट किया । सोनेके पर्वत (सुमेरु)- के आकारका (अत्यंत विशाल) शरीर था, जो युद्धमें शत्रुओंके हृदयमें भय उत्पन्न करनेवाला, अत्यंत बलवान और वीर था । तब (उसे देखकर) सीताजीके मनमें विश्वास हुआ । हनुमानजीने फिर छोटा रूप धारण कर लिया ।
मोरें हृदय परम संदेहा । सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा ॥
कनक भूधराकार सरीरा । समर भयंकर अतिबल बीरा ॥
सीता मन भरोस तब भयऊ । पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ ॥
भावार्थ :- (माता सीताजीने कहा-) हे पुत्र (हनुमान) ! सब वानर तुम्हारे ही समान (नन्हें-नन्हें से) होंगे, राक्षस तो बड़े बलवान, योद्धा हैं । अतः मेरे हृदयमें बड़ा भारी संदेह होता है (कि तुम जैसे बंदर राक्षसोंको कैसे जीतेंगे !) । यह सुनकर हनुमानजीने अपना शरीर प्रकट किया । सोनेके पर्वत (सुमेरु)- के आकारका (अत्यंत विशाल) शरीर था, जो युद्धमें शत्रुओंके हृदयमें भय उत्पन्न करनेवाला, अत्यंत बलवान और वीर था । तब (उसे देखकर) सीताजीके मनमें विश्वास हुआ । हनुमानजीने फिर छोटा रूप धारण कर लिया ।
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