अच्छ-बिमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो ।
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन-से कुंजर केहरि-बारो ॥
राम-प्रताप-हुतासन कच्छ, बिपच्छ, समीर समीरदुलारो ।
पापतें, सापतें, ताप तिहूँतें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो II १९ II
भावार्थ :- हे अक्षयकुमारको मारनेवाले हनुमानजी ! आपने अशोक-वाटिकाको विध्वंस किया और लंकापति रावण-जैसे प्रतापी योद्धाके मुखके तेजकी और देखातक नहीं अर्थात उसकी कुछ भी परवाह नहीं की । आप मेघनाद (इन्द्रजीत), अकम्पन और कुम्भकर्ण-सरीखे हाथियोंके मदको चूर्ण करनेमें किशोरावस्थाकें सिंह हैं । विपक्षरूप तिनकोंके ढेरके लिये भगवान श्रीरामका प्रताप अग्नितुल्य है और पवनकुमार उसके लिये पवनरूप हैं । वे पवननन्दन ही तुलसीदासको सर्वदा पाप, शाप और संताप तीनोंसे बचानेवाले हैं II १९ II
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन-से कुंजर केहरि-बारो ॥
राम-प्रताप-हुतासन कच्छ, बिपच्छ, समीर समीरदुलारो ।
पापतें, सापतें, ताप तिहूँतें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो II १९ II
भावार्थ :- हे अक्षयकुमारको मारनेवाले हनुमानजी ! आपने अशोक-वाटिकाको विध्वंस किया और लंकापति रावण-जैसे प्रतापी योद्धाके मुखके तेजकी और देखातक नहीं अर्थात उसकी कुछ भी परवाह नहीं की । आप मेघनाद (इन्द्रजीत), अकम्पन और कुम्भकर्ण-सरीखे हाथियोंके मदको चूर्ण करनेमें किशोरावस्थाकें सिंह हैं । विपक्षरूप तिनकोंके ढेरके लिये भगवान श्रीरामका प्रताप अग्नितुल्य है और पवनकुमार उसके लिये पवनरूप हैं । वे पवननन्दन ही तुलसीदासको सर्वदा पाप, शाप और संताप तीनोंसे बचानेवाले हैं II १९ II
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