जयत्यंजनी-गर्भ-अंभोधि-संभूत विधु विबुध-कुल-कैरवानंदकारी I
केसरी-चारु-लोचन-चकोरक-सुखद, लोकगन-शोक-संतापहारी II १ II
जयति जय बालकपि केलि-कौतुक उदित-चंडकर-मंडल-ग्रासकर्त्ता I
राहु-रवि-शक्र-पवि-गर्व-खर्वीकरण शरण-भयहरण जय भुवन-भर्त्ता II २ II
जयति रणधीर, रघुवीरहित, देवमणि, रूद्र-अवतार, संसार-पाता I
विप्र-सुर-सिद्ध-मुनि-आशिषाकारवपुष, विमलगुण बुद्धि-वारिधि-विधाता II ३ II
भावार्थ :- हे हनुमानजी ! तुम्हारी जय हो ! तुम अंजनीके गर्भरूपी समुद्रसे चन्द्ररूप उत्पन्न होकर देव-कुलरूपी कुमुदोंको प्रफुल्लित करनेवाले हो, पिता केसरीके सुंदर नेत्ररूपी चकोरोंको आनंद देनेवाले हो और समस्त लोकोंका शोक-संताप हरनेवाले हो II १ II तुम्हारी जय हो, जय हो ! तुमने बचपनमें ही बाललीलासे उदयकालीन प्रचण्ड सूर्यके मण्डलको लाल-लाल खिलौना समझकर निगल लिया था I उस समय तुमने राहु, सूर्य, इन्द्र और वज्रका गर्व चूर्ण कर दिया था I हे शरणागतके भय हरनेवाले ! हे विश्वका भरण-पोषण करनेवाले !! तुम्हारी जय हो II २ II तुम्हारी जय हो ! तुम रणमें बड़े धीर, सदा श्रीरामजीका हित करनेवाले, देव-शिरोमणी, रूद्रके अवतार और संसारके रक्षक हो I तुम्हारा शरीर ब्राह्मण, देवता, सिद्ध और मुनियोंके आशीर्वादका मूर्तिमान रूप है I तुम निर्मल गुण और बुद्धिके समुद्र तथा विधाता हो II ३ II
केसरी-चारु-लोचन-चकोरक-सुखद, लोकगन-शोक-संतापहारी II १ II
जयति जय बालकपि केलि-कौतुक उदित-चंडकर-मंडल-ग्रासकर्त्ता I
राहु-रवि-शक्र-पवि-गर्व-खर्वीकरण शरण-भयहरण जय भुवन-भर्त्ता II २ II
जयति रणधीर, रघुवीरहित, देवमणि, रूद्र-अवतार, संसार-पाता I
विप्र-सुर-सिद्ध-मुनि-आशिषाकारवपुष, विमलगुण बुद्धि-वारिधि-विधाता II ३ II
भावार्थ :- हे हनुमानजी ! तुम्हारी जय हो ! तुम अंजनीके गर्भरूपी समुद्रसे चन्द्ररूप उत्पन्न होकर देव-कुलरूपी कुमुदोंको प्रफुल्लित करनेवाले हो, पिता केसरीके सुंदर नेत्ररूपी चकोरोंको आनंद देनेवाले हो और समस्त लोकोंका शोक-संताप हरनेवाले हो II १ II तुम्हारी जय हो, जय हो ! तुमने बचपनमें ही बाललीलासे उदयकालीन प्रचण्ड सूर्यके मण्डलको लाल-लाल खिलौना समझकर निगल लिया था I उस समय तुमने राहु, सूर्य, इन्द्र और वज्रका गर्व चूर्ण कर दिया था I हे शरणागतके भय हरनेवाले ! हे विश्वका भरण-पोषण करनेवाले !! तुम्हारी जय हो II २ II तुम्हारी जय हो ! तुम रणमें बड़े धीर, सदा श्रीरामजीका हित करनेवाले, देव-शिरोमणी, रूद्रके अवतार और संसारके रक्षक हो I तुम्हारा शरीर ब्राह्मण, देवता, सिद्ध और मुनियोंके आशीर्वादका मूर्तिमान रूप है I तुम निर्मल गुण और बुद्धिके समुद्र तथा विधाता हो II ३ II
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