देखा सैल न औषध चीन्हा I सहसा कपि उपारि गिरि लीन्हा ॥
गहि गिरि निसि नभ धावक भयऊ I अवधपुरी ऊपर कपि गयऊ ॥
भावार्थ :- हनुमानजीने (द्रोणाचल) पर्वतको देखा, पर औषध (संजीवनी बुटी) न पहचान सके। तब उन्होंने एकदमसे (द्रोणाचल) पर्वतको ही उखाड़ लिया। पर्वत लेकर हनुमानजी रातही में आकाश मार्गसे दौड़ चले और अयोध्यापुरीके ऊपर पहुँच गए I
गहि गिरि निसि नभ धावक भयऊ I अवधपुरी ऊपर कपि गयऊ ॥
भावार्थ :- हनुमानजीने (द्रोणाचल) पर्वतको देखा, पर औषध (संजीवनी बुटी) न पहचान सके। तब उन्होंने एकदमसे (द्रोणाचल) पर्वतको ही उखाड़ लिया। पर्वत लेकर हनुमानजी रातही में आकाश मार्गसे दौड़ चले और अयोध्यापुरीके ऊपर पहुँच गए I
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