जयति सुग्रीव-ऋक्षादि-रक्षण-निपुण, बालि-बलशालि-बध -मुख्यहेतू I
जलधि-लंघन सिंह सिंहिका-मद-मथन, रजनिचर-नगर-उत्पात-केतू II ४ II
जयति भूनन्दिनी-शोच-मोचन विपिन-दलन घननादवश विगतशंका I
लूमलीलाऽनल-ज्वालमालाकुलित होलिकाकरण लंकेश-लंका II ५ II
भावार्थ :- हे हनुमानजी ! तुम्हारी जय हो ! तुम वानरराज सुग्रीव तथा ऋक्षराज जाम्बवन्त आदिकी रक्षा करनेमें कुशल हो I महाबलवान बालिके मरवानेमें तुम्हीं मुख्य कारण हो I तुम्हीं समुद्र लाँघनेके समय सिंहिका राक्षसीका मर्दन करनेमें सिंहरूप तथा राक्षसोंकी लंकापुरीके लिये धूमकेतु (पुच्छल तारे)- रूप हो II ४ II तुम्हारी जय हो ! तुम श्रीसीताजीको भगवान रामका सन्देशा सुनाकर उनकी चिन्ता दूर करनेवाले और लंकेश रावणके अशोकवनको उजाड़नेवाले हो I तुमने अपनेको निःशंक होकर मेघनाद (इन्द्रजीत)- से ब्रह्मास्त्र में बँधवा लिया था तथा अपनी पूँछकी लीलासे अग्निकी धधकती हुई लपटोंसे व्याकुल हुए दशमुख रावणकी लंकामें चारों और होली जला दी थी II ५ II
जलधि-लंघन सिंह सिंहिका-मद-मथन, रजनिचर-नगर-उत्पात-केतू II ४ II
जयति भूनन्दिनी-शोच-मोचन विपिन-दलन घननादवश विगतशंका I
लूमलीलाऽनल-ज्वालमालाकुलित होलिकाकरण लंकेश-लंका II ५ II
भावार्थ :- हे हनुमानजी ! तुम्हारी जय हो ! तुम वानरराज सुग्रीव तथा ऋक्षराज जाम्बवन्त आदिकी रक्षा करनेमें कुशल हो I महाबलवान बालिके मरवानेमें तुम्हीं मुख्य कारण हो I तुम्हीं समुद्र लाँघनेके समय सिंहिका राक्षसीका मर्दन करनेमें सिंहरूप तथा राक्षसोंकी लंकापुरीके लिये धूमकेतु (पुच्छल तारे)- रूप हो II ४ II तुम्हारी जय हो ! तुम श्रीसीताजीको भगवान रामका सन्देशा सुनाकर उनकी चिन्ता दूर करनेवाले और लंकेश रावणके अशोकवनको उजाड़नेवाले हो I तुमने अपनेको निःशंक होकर मेघनाद (इन्द्रजीत)- से ब्रह्मास्त्र में बँधवा लिया था तथा अपनी पूँछकी लीलासे अग्निकी धधकती हुई लपटोंसे व्याकुल हुए दशमुख रावणकी लंकामें चारों और होली जला दी थी II ५ II
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