रावन त्रास दई सिय को सब, राक्षसि सों कहि शोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो ॥
चाहत सीय अशोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ ४ ॥
भावार्थ :- लंकापति रावणने सती सीताको कष्ट पहुँचानेके लिये सभी राक्षसियोंको निर्देश दिया था I हे महाप्रभु हनुमानजी ! उसी समय वहाँ पहुँचकर आपने बड़े-बड़े राक्षस योद्धाओका संहार कर दिया I शोकसे अत्यंत संतप्त होकर सीताजी स्वयंको भस्म करनेके लिये अशोक-वृक्षसे अग्निकी याचना कर रही थीं, उसी समय आपने उन्हें भगवान श्रीरामकी अंगूठी देकर उनके महान शोकका निवारण कर दिया I संसारमें ऐसा कौन है जो आपके 'संकटमोचन' नामसे परिचित नहीं है ? II ४ II
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो ॥
चाहत सीय अशोक सों आगि सु, दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो ।
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥ ४ ॥
भावार्थ :- लंकापति रावणने सती सीताको कष्ट पहुँचानेके लिये सभी राक्षसियोंको निर्देश दिया था I हे महाप्रभु हनुमानजी ! उसी समय वहाँ पहुँचकर आपने बड़े-बड़े राक्षस योद्धाओका संहार कर दिया I शोकसे अत्यंत संतप्त होकर सीताजी स्वयंको भस्म करनेके लिये अशोक-वृक्षसे अग्निकी याचना कर रही थीं, उसी समय आपने उन्हें भगवान श्रीरामकी अंगूठी देकर उनके महान शोकका निवारण कर दिया I संसारमें ऐसा कौन है जो आपके 'संकटमोचन' नामसे परिचित नहीं है ? II ४ II
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