जयति सौमित्रि-रघुनंदनानंदकर, ऋक्ष-कपि-कटक-संघट-विधायी I
बद्ध-वारिधि-सेतु अमर-मंगल-हेतु, भानुकुलकेतु-रण-विजयदायी II ६ II
जयति जय वज्रतनु दशन नख मुख विकट, चंड-भुजदंड तरू-शैल-पानी I
समर-तैलिक-यंत्र तिल-तमीचर-निकर, पेरि डारे सुभट घालि घानी II ७ II
भावार्थ :- तुम्हारी जय हो I तुम श्रीराम-लक्ष्मणको आनन्द देनेवाले, रीछ और बंदरोंकी सेना इकट्ठी कर समुद्रपर पुल बाँधनेवाले, देवताओंका कल्याण करनेवाले और सूर्यकुल-केतु भगवान श्रीरामको संग्राममें विजय-लाभ करानेवाले हो II ६ II तुम्हारी जय हो, जय हो I तुम्हारा शरीर, दाँत, नख और विकराल मुख वज्रके समान है I तुम्हारे भुजदण्ड बड़े ही प्रचण्ड हैं, तुम वृक्षों और पर्वतोंको हाथोंपर उठानेवाले हो I तुमने संग्रामरूपी कोल्हूमें राक्षसोंके समूह और बड़े-बड़े योद्धारुपी तिलोंको डाल-डालकर घानीकी तरह पेर डाला II ७ II
बद्ध-वारिधि-सेतु अमर-मंगल-हेतु, भानुकुलकेतु-रण-विजयदायी II ६ II
जयति जय वज्रतनु दशन नख मुख विकट, चंड-भुजदंड तरू-शैल-पानी I
समर-तैलिक-यंत्र तिल-तमीचर-निकर, पेरि डारे सुभट घालि घानी II ७ II
भावार्थ :- तुम्हारी जय हो I तुम श्रीराम-लक्ष्मणको आनन्द देनेवाले, रीछ और बंदरोंकी सेना इकट्ठी कर समुद्रपर पुल बाँधनेवाले, देवताओंका कल्याण करनेवाले और सूर्यकुल-केतु भगवान श्रीरामको संग्राममें विजय-लाभ करानेवाले हो II ६ II तुम्हारी जय हो, जय हो I तुम्हारा शरीर, दाँत, नख और विकराल मुख वज्रके समान है I तुम्हारे भुजदण्ड बड़े ही प्रचण्ड हैं, तुम वृक्षों और पर्वतोंको हाथोंपर उठानेवाले हो I तुमने संग्रामरूपी कोल्हूमें राक्षसोंके समूह और बड़े-बड़े योद्धारुपी तिलोंको डाल-डालकर घानीकी तरह पेर डाला II ७ II
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