रचिबेको बिधि जैसे, पालिबेको हरि, हर मीच मारिबेको, ज्याइबेको सुधापान भो I
धरिबेको धरनि, तरनि तम दलिबेको, सोखिबे कृसानु, पोपिबेको हिम-भानु भो II
खल-दुख-दोषिबेको, जन-पारितोषिबेको, माँगिबो मलीनताको मोदक सुदान भो I
आरतकी आरति निवारिबेको तिहूँ पुर, तुलसीको साहेब हठीलो हनुमान भो II ११ II
भावार्थ :- आप सृष्टिरचनाके लिये ब्रह्मा, पालन करनेको विष्णु, मारनेको रूद्र और जिलानेके लिये अमृतपानके समान हुए; धारण करनेमें धरती, अन्धकारको नसानेमें सूर्य, सुखानेमें अग्नि, पोषण करनेमें चन्द्रमा और सूर्य हुए; खलोंको दुःख देने और दूषित बनानेवाले, सेवकोंको संतुष्ट करनेवाले एंव माँगनारुपी मैलेपनका विनाश करनेमें मोदकदाता हुए। तीनों लोकोंमें दुखियोंके दुःख छुड़ानेके लिए तुलसीके स्वामी श्रीहनुमानजी दृढ़प्रतिज्ञ हुए हैं II ११ II
धरिबेको धरनि, तरनि तम दलिबेको, सोखिबे कृसानु, पोपिबेको हिम-भानु भो II
खल-दुख-दोषिबेको, जन-पारितोषिबेको, माँगिबो मलीनताको मोदक सुदान भो I
आरतकी आरति निवारिबेको तिहूँ पुर, तुलसीको साहेब हठीलो हनुमान भो II ११ II
भावार्थ :- आप सृष्टिरचनाके लिये ब्रह्मा, पालन करनेको विष्णु, मारनेको रूद्र और जिलानेके लिये अमृतपानके समान हुए; धारण करनेमें धरती, अन्धकारको नसानेमें सूर्य, सुखानेमें अग्नि, पोषण करनेमें चन्द्रमा और सूर्य हुए; खलोंको दुःख देने और दूषित बनानेवाले, सेवकोंको संतुष्ट करनेवाले एंव माँगनारुपी मैलेपनका विनाश करनेमें मोदकदाता हुए। तीनों लोकोंमें दुखियोंके दुःख छुड़ानेके लिए तुलसीके स्वामी श्रीहनुमानजी दृढ़प्रतिज्ञ हुए हैं II ११ II
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