चारों जुग परताप तुम्हारा I है परसिद्ध जगत उजियारा II २९ II
भावार्थ:- हे हनुमानजी ! चारों युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग)- में आपका प्रताप जगतको सदैव प्रकाशित करता चला आया है - ऐसा लोकमें प्रसिद्ध है I अर्थात् चारो युगों-सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग (तीनो लोक-स्वर्गलोक, भूलोक और पाताललोक तथा तीनो काल-भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल)- में आपका यश फैला हुआ है, जगतमें आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है ।
व्याख्या:-
सतयुग:- सतयुगमें पवनपुत्र भगवान शंकरके स्वरूप से विश्वमें स्थित थे, तभी तो उन्हें शिवस्वरूप (ग्यारह रुद्रावतारोंमें से एक) लिखा और कहा गया है I गोस्वामी तुलसीदासजीने हनुमान चालीसामें उन्हें शंकर-सुवन केसरी-नंदन कहकर संबोधित किया है । अत: यह प्रमाणित है कि श्रीहनुमानजी सतयुगमें शिवरूपमें थे और कपालधारी शिव-शंकर तो अजर-अमर हैं ।
त्रेतायुग:- त्रेतायुगमें पवनपुत्र हनुमानजीने केसरी-नंदन और अंजनी-पुत्रके रूपमें जन्म लिया और वे भगवान श्रीरामके दास्य-भावसे परम-भक्त बनकर उनके साथ छायाकी तरह रहे । श्रीराम, लक्ष्मण, भरत, सीता, सुग्रीव, विभीषण और संपूर्ण कपि-मंडल, कोई भी उनके ऋणसे मुक्त अर्थात उऋण नहीं हो सकता । इस प्रकार त्रेतायुगमें हनुमानजी साक्षात विराजमान हैं । इनके बिना तो संपूर्ण रामायण चरित्र पूर्ण होता ही नहीं ।
द्वापरयुग:- द्वापरयुगमें हनुमानजी भीम (पवनदेवके पुत्र और पांच पाण्डवोंमें से एक- इसलिये रिश्तेमें भीम पवनपुत्र हनुमानजीके भाई हुए)- की परीक्षा लेते हैं । महाभारतमें प्रसंग हैं कि भीम उनकी पूंछको मार्ग से हटानेके लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो, लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूछ नहीं हटा पाते हैं । दूसरे हनुमानजी और अर्जुनके प्रसंग अनुसार भगवान श्रीकृष्णके कहने पर श्रीहनुमानजी महाभारतके युद्धमें अर्जुनके रथके ऊपर ध्वजा लिए विराजित रहते हैं अर्थात ध्वजामें उनका वास रहता हैं ।
कलियुग:- कलियुगमें जहां-जहां भगवान श्रीरामकी कथा-कीर्तन इत्यादि होते हैं, वहां श्रीहनुमानजी गुप्त रूपसे विराजमान रहते हैं । 16वीं सदीके महान संत कवि तुलसीदासजीको हनुमानजीकी कृपासे ही भगवान श्रीराम और लक्ष्मणजीके दर्शन प्राप्त हुए ।
गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानसके सुंदरकाण्डमें सीताजीके वचनोंके अनुसार-
अजर अमर गुननिधि सुत होहू । करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ॥
अर्थात:- हे पुत्र हनुमान ! तुम अजर (बुढ़ापेसे रहित), अमर और गुणोंके खजाने होओ । श्रीरघुनाथजी तुम पर बहुत कृपा करें ।
हनुमानजीको भगवान श्रीरामसे यह वरदान मिला है की अनेक जगह पे एक साथ रामायण श्रवण करनेके लिए अनेक शरीर धारण कर सकोंगे और जब तक इस जगतमें रामायणकी कथा होती रहेगी तुम जीवित रहोंगे अर्थात चिरंजीवी रहोंगे I
श्लोक:- 'अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥'
अर्थात्:- अश्वत्थामा, बलि, व्यास, भगवान हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम ये सभी चिरंजीवी हैं ।
महिमा :- इस कलियुगमें एक हनुमानजी ही सबसे ज्यादा जाग्रत और साक्षात देव हैं ।
भावार्थ:- हे हनुमानजी ! चारों युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग)- में आपका प्रताप जगतको सदैव प्रकाशित करता चला आया है - ऐसा लोकमें प्रसिद्ध है I अर्थात् चारो युगों-सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग (तीनो लोक-स्वर्गलोक, भूलोक और पाताललोक तथा तीनो काल-भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल)- में आपका यश फैला हुआ है, जगतमें आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है ।
व्याख्या:-
सतयुग:- सतयुगमें पवनपुत्र भगवान शंकरके स्वरूप से विश्वमें स्थित थे, तभी तो उन्हें शिवस्वरूप (ग्यारह रुद्रावतारोंमें से एक) लिखा और कहा गया है I गोस्वामी तुलसीदासजीने हनुमान चालीसामें उन्हें शंकर-सुवन केसरी-नंदन कहकर संबोधित किया है । अत: यह प्रमाणित है कि श्रीहनुमानजी सतयुगमें शिवरूपमें थे और कपालधारी शिव-शंकर तो अजर-अमर हैं ।
त्रेतायुग:- त्रेतायुगमें पवनपुत्र हनुमानजीने केसरी-नंदन और अंजनी-पुत्रके रूपमें जन्म लिया और वे भगवान श्रीरामके दास्य-भावसे परम-भक्त बनकर उनके साथ छायाकी तरह रहे । श्रीराम, लक्ष्मण, भरत, सीता, सुग्रीव, विभीषण और संपूर्ण कपि-मंडल, कोई भी उनके ऋणसे मुक्त अर्थात उऋण नहीं हो सकता । इस प्रकार त्रेतायुगमें हनुमानजी साक्षात विराजमान हैं । इनके बिना तो संपूर्ण रामायण चरित्र पूर्ण होता ही नहीं ।
द्वापरयुग:- द्वापरयुगमें हनुमानजी भीम (पवनदेवके पुत्र और पांच पाण्डवोंमें से एक- इसलिये रिश्तेमें भीम पवनपुत्र हनुमानजीके भाई हुए)- की परीक्षा लेते हैं । महाभारतमें प्रसंग हैं कि भीम उनकी पूंछको मार्ग से हटानेके लिए कहते हैं तो हनुमानजी कहते हैं कि तुम ही हटा लो, लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूछ नहीं हटा पाते हैं । दूसरे हनुमानजी और अर्जुनके प्रसंग अनुसार भगवान श्रीकृष्णके कहने पर श्रीहनुमानजी महाभारतके युद्धमें अर्जुनके रथके ऊपर ध्वजा लिए विराजित रहते हैं अर्थात ध्वजामें उनका वास रहता हैं ।
कलियुग:- कलियुगमें जहां-जहां भगवान श्रीरामकी कथा-कीर्तन इत्यादि होते हैं, वहां श्रीहनुमानजी गुप्त रूपसे विराजमान रहते हैं । 16वीं सदीके महान संत कवि तुलसीदासजीको हनुमानजीकी कृपासे ही भगवान श्रीराम और लक्ष्मणजीके दर्शन प्राप्त हुए ।
गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानसके सुंदरकाण्डमें सीताजीके वचनोंके अनुसार-
अजर अमर गुननिधि सुत होहू । करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ॥
अर्थात:- हे पुत्र हनुमान ! तुम अजर (बुढ़ापेसे रहित), अमर और गुणोंके खजाने होओ । श्रीरघुनाथजी तुम पर बहुत कृपा करें ।
हनुमानजीको भगवान श्रीरामसे यह वरदान मिला है की अनेक जगह पे एक साथ रामायण श्रवण करनेके लिए अनेक शरीर धारण कर सकोंगे और जब तक इस जगतमें रामायणकी कथा होती रहेगी तुम जीवित रहोंगे अर्थात चिरंजीवी रहोंगे I
श्लोक:- 'अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥'
अर्थात्:- अश्वत्थामा, बलि, व्यास, भगवान हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम ये सभी चिरंजीवी हैं ।
महिमा :- इस कलियुगमें एक हनुमानजी ही सबसे ज्यादा जाग्रत और साक्षात देव हैं ।
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