लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे I आनि सजीवन प्रान उबारे II ६ II
भावार्थ :- शेषावतार श्रीलक्ष्मणजी लंकाके युद्ध-मेदानमें {रावण-सुत मेघनाद (इन्द्रजीत)- के बाण (वीरघातिनी अमोघ शक्ति)- की चोटसे} मूर्छित होकर पड़े थे {युद्ध-भूमिमें चारों ओर शोकका कोलाहल व्याप्त था}, तब श्रीहनुमानजीने शीध्र ही संजीवनी बूटी {हिमालयसे द्रोणाचल पर्वत} लाकर उनके प्राणोंकी रक्षा की II ६ II
भावार्थ :- शेषावतार श्रीलक्ष्मणजी लंकाके युद्ध-मेदानमें {रावण-सुत मेघनाद (इन्द्रजीत)- के बाण (वीरघातिनी अमोघ शक्ति)- की चोटसे} मूर्छित होकर पड़े थे {युद्ध-भूमिमें चारों ओर शोकका कोलाहल व्याप्त था}, तब श्रीहनुमानजीने शीध्र ही संजीवनी बूटी {हिमालयसे द्रोणाचल पर्वत} लाकर उनके प्राणोंकी रक्षा की II ६ II
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