कहौ सो बिपिन है धौं केतिक दूरि I
जहाँ गवन कियो, कुँवर कोसलपति, बूझति सिय पिय पतिहि बिसूरि II १ II
प्राननाथ परदेस पयादेहि चले सुख सकल तजे तृन तूरि I
करौं बयारि, बिलम्बिय बिटपतर, झारौं हौं चरन-सरोरुह-धूरि II २ II
भावार्थ :- (मार्गमें थक जानेसे) श्रीजानकीजी चिन्तित होकर भगवान श्रीरामसे पूछती हैं- 'हे कोसलराजकुमार ! आपने जहाँके लिये प्रस्थान किया है, वह वन यहाँसे कितनी दूर है ? II १ II हे प्राणनाथ ! आपने सब सुखोंको तृण तोड़कर त्याग दिया (सुखोंसे एकदम सम्बन्ध त्याग कर दिया) और अब परदेशको पैदल ही जा रहे हैं I (आप थक गये होंगे) कुछ देर इस वृक्षके नीचे विश्राम कीजिये; मैं आपको हवा करूँगीं और चरणकमलोंकी धूलि झाड़ूँगी' II २ II
जहाँ गवन कियो, कुँवर कोसलपति, बूझति सिय पिय पतिहि बिसूरि II १ II
प्राननाथ परदेस पयादेहि चले सुख सकल तजे तृन तूरि I
करौं बयारि, बिलम्बिय बिटपतर, झारौं हौं चरन-सरोरुह-धूरि II २ II
भावार्थ :- (मार्गमें थक जानेसे) श्रीजानकीजी चिन्तित होकर भगवान श्रीरामसे पूछती हैं- 'हे कोसलराजकुमार ! आपने जहाँके लिये प्रस्थान किया है, वह वन यहाँसे कितनी दूर है ? II १ II हे प्राणनाथ ! आपने सब सुखोंको तृण तोड़कर त्याग दिया (सुखोंसे एकदम सम्बन्ध त्याग कर दिया) और अब परदेशको पैदल ही जा रहे हैं I (आप थक गये होंगे) कुछ देर इस वृक्षके नीचे विश्राम कीजिये; मैं आपको हवा करूँगीं और चरणकमलोंकी धूलि झाड़ूँगी' II २ II
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