जयति विश्व-विख्यात बानैत-विरूदावली, विदुष बरनत वेद विमल बानी I
दास तुलसी त्रास शमन सीतारमण संग शोभित राम-राजधानी II ९ II
भावार्थ :- हे हनुमानजी ! तुम्हारी जय हो I तुम विश्वमें विख्यात हो, वीरताका बाना सदा ही कसे रहते हो I विद्वान और वेद अपनी विशुद्ध वाणीसे तुम्हारी विरदावलीका वर्णन करते हैं I तुम तुलसीदासके भव-भयको नाश करनेवाले हो और अयोध्यामें सीतारमण श्रीरामजीके साथ सदा शोभायमान रहते हो II ९ II
दास तुलसी त्रास शमन सीतारमण संग शोभित राम-राजधानी II ९ II
भावार्थ :- हे हनुमानजी ! तुम्हारी जय हो I तुम विश्वमें विख्यात हो, वीरताका बाना सदा ही कसे रहते हो I विद्वान और वेद अपनी विशुद्ध वाणीसे तुम्हारी विरदावलीका वर्णन करते हैं I तुम तुलसीदासके भव-भयको नाश करनेवाले हो और अयोध्यामें सीतारमण श्रीरामजीके साथ सदा शोभायमान रहते हो II ९ II
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