प्रणवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यानघन I
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर II
भावार्थ :- मैं पवनकुमार श्रीहनुमानजीको प्रणाम करता हूँ, जो दुष्टरुपी वनको भस्म करनेके लिये अग्निरूप हैं, जो (अज्ञानरुपी असुरका विनाश करनेके लिये साक्षात्) ज्ञानकी घनमूर्ति हैं और जिनके हृदयरूपी भवनमें धनुष-बाण धारण किये भगवान श्रीराम निवास करते हैं I
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर II
भावार्थ :- मैं पवनकुमार श्रीहनुमानजीको प्रणाम करता हूँ, जो दुष्टरुपी वनको भस्म करनेके लिये अग्निरूप हैं, जो (अज्ञानरुपी असुरका विनाश करनेके लिये साक्षात्) ज्ञानकी घनमूर्ति हैं और जिनके हृदयरूपी भवनमें धनुष-बाण धारण किये भगवान श्रीराम निवास करते हैं I
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