कवन सो काज कठिन जग माहीं । जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं ॥
राम काज लगि तव अवतारा I सुनतहिं भयउ पर्बताकारा ॥
कनक बरन तन तेज बिराजा I मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा ॥
सिंहनाद करि बारहिं बारा I लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा ॥
भावार्थ :- (ऋक्षराज जाम्बवानने कहा)- हे पवनसुत बलवान हनुमानजी ! जगतमें कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात ! तुमसे न हो सके । भगवान श्रीरामके कार्यके लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है । यह सुनते ही हनुमानजी पर्वतके आकारके (अत्यंत विशालकाय) हो गए I उनका सोनेका सा रंग है, शरीर पर तेज सुशोभित है, मानो दूसरा पर्वतोंका राजा सुमेरु हो । हनुमानजीने बार-बार सिंहनाद करके कहा- मैं इस खारे समुद्रको खेलमें ही लाँघ सकता हूँ ।
राम काज लगि तव अवतारा I सुनतहिं भयउ पर्बताकारा ॥
कनक बरन तन तेज बिराजा I मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा ॥
सिंहनाद करि बारहिं बारा I लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा ॥
भावार्थ :- (ऋक्षराज जाम्बवानने कहा)- हे पवनसुत बलवान हनुमानजी ! जगतमें कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात ! तुमसे न हो सके । भगवान श्रीरामके कार्यके लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है । यह सुनते ही हनुमानजी पर्वतके आकारके (अत्यंत विशालकाय) हो गए I उनका सोनेका सा रंग है, शरीर पर तेज सुशोभित है, मानो दूसरा पर्वतोंका राजा सुमेरु हो । हनुमानजीने बार-बार सिंहनाद करके कहा- मैं इस खारे समुद्रको खेलमें ही लाँघ सकता हूँ ।
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