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Nakhatrana-Bhuj, Kutch-Gujarat, India
World's No. 1 Database of Lord Bajrang Bali Statues and Temples in India and Abroad on Internet Social Media Site.**Dy. Manager-Instrumentation at Archean Chemical Industries Pvt. Ltd., Hajipir-Bhuj (Gujarat). Studied BE, Instrumentation and Control Engineering (First Class) at Govt. Engineering College, Gandhinagar affiliated to Gujarat University.**

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Sunday 5 July 2015

गोस्वामी तुलसीदास लिखित श्रीरामचरितमानसका सुंदरकाण्ड

नाथ दसानन कर मैं भ्राता ।
श्रवन सुजसु सुनि आयउँ प्रभु भंजन भव भीर ।
त्राहि त्राहि आरति हरन सरन सुखद रघुबीर ॥
अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी । बोले बचन भगत भय हारी ॥
कहु लंकेस सहित परिवारा । कुसल कुठाहर बास तुम्हारा ॥
खल मंडली बसहु दिनु राती । सखा धरम निबहइ केहि भाँती ॥
मैं जानउँ तुम्हारि सब रीती । अति नय निपुन न भाव अनीती ॥
बरु भल बास नरक कर ताता । दुष्ट संग जनि देइ बिधाता ॥
अब पद देखि कुसल रघुराया । जौं तुम्ह कीन्हि जानि जन दाया ॥
मागा तुरत सिंधु कर नीरा I
जदपि सखा तव इच्छा नहीं । मोर दरसु अमोघ जग माहीं ॥
अस कहि राम तिलक तेहि सारा ।
{पूर्व प्रसंग :- लंकासे निष्कासित विभीषण भगवान श्रीरामकी शरणमें समुद्रके इस पार (जिधर श्रीरामचंद्रजीकी सेना थी) आ गए । अनजान व्यक्ति आते देख वानरोंको संदेह हुआ I वानरराज सुग्रीव उससे मिले I भरोसा होने पर उन्हें भगवान श्रीरामसे मिलाया I}
भावार्थ :- हे नाथ ! मैं दशमुख रावणका भाई हूँ । मैं कानोंसे आपका सुयश सुनकर आया हूँ कि प्रभु (शरणागत-वत्सल और)- भव (जन्म-मरण)- के भयका नाश करने वाले हैं ।  हे दुखियोंके दुःख दूर करनेवाले और शरणागतको सुख देने वाले श्रीरघुवीर ! मेरी रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए I छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित गले मिलकर उनको अपने पास बैठाकर श्रीरामजी भक्तोंके भयको हरनेवाले वचन बोले- हे लंकेश ! परिवार सहित अपनी कुशल कहो । तुम्हारा निवास बुरी जगह पर है I दिन-रात दुष्टोंकी मंडलीमें बसते हो । (ऐसी दशामें) हे सखे ! तुम्हारा धर्म किस प्रकार निभता है ? मैं तुम्हारी सब रीति (आचार-व्यवहार) जानता हूँ । तुम अत्यंत नीतिनिपुण हो, तुम्हें अनीति नहीं सुहाती I (विभीषणजीने कहा)- हे तात ! नरकमें रहना वरन अच्छा है, परंतु विधाता दुष्टका संग (कभी) न दे । हे रघुनाथजी ! अब आपके चरणोंका दर्शन कर कुशल से हूँ, जो आपने अपना सेवक जानकर मुझ पर दया की है I प्रभु श्रीरामजीने तुरंत ही समुद्रका जल माँगा और कहा- हे सखा ! यद्यपि तुम्हारी इच्छा नहीं है, पर जगतमें मेरा दर्शन अमोघ है (वह निष्फल नहीं जाता) । ऐसा कहकर श्रीरामजीने उनको राजतिलक कर दिया (लंकाधिपति घोषित किया) ।

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