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Nakhatrana-Bhuj, Kutch-Gujarat, India
World's No. 1 Database of Lord Bajrang Bali Statues and Temples in India and Abroad on Internet Social Media Site.**Dy. Manager-Instrumentation at Archean Chemical Industries Pvt. Ltd., Hajipir-Bhuj (Gujarat). Studied BE, Instrumentation and Control Engineering (First Class) at Govt. Engineering College, Gandhinagar affiliated to Gujarat University.**

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Monday 12 October 2015

कवितावली_किष्किन्धाकाण्ड_समुद्रोल्लंघन_गोस्वामी तुलसीदास रचित

जब अंगदादिनकी मति-गति मंद भई, पवनके पूतको न कूदिबेको पलु गो ।
साहसी ह्वै सैलपर सहसा सकेलि आइ, चितवत चहूँ ओर, औरनि को कलु गो II
‘तुलसी’ रसातल को निकसि सलिलु आयो, कालु कलमल्यो, अहि-कमठको बलु गो ।
चारिहू चरन के चपेट चाँपें चिपिटि गो, उचकें उचकि चारि अंगुल अचलु गो II
भावार्थ :- जब अंगदादि वानरोंकी गति और बुद्धि मंद पड़ गयी (अर्थात किसीने (१०० योजन अपार समुद्रके) पार जाना स्वीकार नहीं किया) तब वायुकुमार हनुमानजीको (४०० कोस महासागर) कुदनेमें पलमात्रकी भी देरी नहीं हुई I वे साहसपूर्वक सहसा कौतुक से ही पर्वत पर आ चारों और देखने लगे I इससे शत्रुओंकी शान्ति भंग हो गयी I गोसाईंजी कहते हैं कि रसातलसे जल निकल आया, वराह भगवान कलमला गये तथा शेष और कच्छप बलहीन हो गये I चारों चरणोंसे जोरसे दबानेसे पर्वत पृथ्वीमें चिपट गया और फिर उनके कुदनेपर पर्वत भी चार अङ्गुल उचक गया I

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