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Nakhatrana-Bhuj, Kutch-Gujarat, India
World's No. 1 Database of Lord Bajrang Bali Statues and Temples in India and Abroad on Internet Social Media Site.**Dy. Manager-Instrumentation at Archean Chemical Industries Pvt. Ltd., Hajipir-Bhuj (Gujarat). Studied BE, Instrumentation and Control Engineering (First Class) at Govt. Engineering College, Gandhinagar affiliated to Gujarat University.**

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Wednesday 14 October 2015

गीतावली_सुन्दरकाण्ड_वानरसेनाकी लंकायात्रा_गोस्वामी तुलसीदासजी कृत

जब रघुबीर पयानो कीन्हों I
छुभित सिन्धु, डगमगत महीधर, सजि सारँग कर लीन्हों II १ II
कटकटात भट भालु, बिकट मरकट करि केहरि-नाद I
कूदत करि रघुनाथ-सपथ उपरी-उपरा बदि बाद II ४ II
गए पूरि सर धूरि, भूरि भय अग थल जलधि समान I
नभ-निसान, हनुमान-हाँक सुनि समुझत कोउ न अपान II ७ II
चली चमू, चहु ओर सोर, कछु बनै न बरने भीर I
किलकिलात, कसमसत, कोलाहल होत नीरनिधि-तीर II ९ II
भावार्थ :- जिस समय भगवान श्रीरघुवीर (साथमें वीरवर लक्ष्मण तथा वानरसेना)- ने प्रयाण किया, उस समय समुद्र क्षुभित हो गया और पर्वत डगमगाने लगे I इसी समय भगवान श्रीरामने अपना धनुष चढ़ाकर हाथमें उठाया II १ II रीछ और वानरवीर विकट सिंहनाद करते हुए दाँत पीसने लगे और शर्त लगाकर प्रभु श्रीरघुनाथजीकी शपथ खाकर वे चढ़ा-ऊपरी करते हुए कूदने लगे II ४ II बहुत-से सरोवर धूलिसे भर गये और अत्यन्त भयसे (पर्वतोंके उखड़ जानेसे उनके स्थानमें जल भर जानेके कारण) अनेकों पहाड़ी प्रदेश समुद्रवत् हो गये I आकाशमें देवताओंके ढोल और परमवीर हनुमानजीकी गर्जनाका कोलाहल सुनकर कोई अपने कथनको भी नहीं समझ सकता था II ७ II इस प्रकार जब वानरोंकी सेनाने कूच किया तो चारों और कोलाहल छा गया I उस भीड़का कुछ वर्णन करते नहीं बनता I वानरगण किलकिलाते थे और वे एक दूसरेसे ठसे हुए थे I इस प्रकार उस समय समुद्रतट पर बड़ा कोलाहल हो रहा था II ९ II

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